Tuesday, 27 August 2013
एक कोशिश .......इस उझाड से दृश्य की बेचारगी पर मेरे दिल में कुछ यूँ ख़याल आया ......
मेरे सर पे भी मोहब्बत का सहरा होता,
तेरे दर पे जो या रब वो ठहरा होता!
रह पाती ना खलिश सी यूँ विरानियाँ,
हर पत्थर पे किसी का जो पहरा होता!
इस तरहा सन्नाटा क्यूँ अब छाया,
कोई परचम तो यहाँ भी फ़हरा होता!
नसीब में मेरे फिर तन्हाई क्यूँ बरपी,
कोई मुसाफिर आकर यहाँ भी ठहरा होता!
Thots
प्रथम व्यक्ति
बहुत साल बाद दो दोस्त रस्ते में मिले . धनवान दोस्त ने उसकी आलिशान
गाड़ी पार्क की और गरीब मित्र से बोला
चल इस गार्डन में बेठकर बात करते है . चलते चलते अमीर दोस्त ने गरीब दोस्त से
कहा
तेरे में और मेरे में बहुत फर्क है . हम दोनों साथ में पढ़े साथ में बड़े हुए में
कहा पहुच गया और तू कहा रह गया ? चलते चलते गरीब दोस्त अचानक रुक गया .
अमीर दोस्त ने पूछा क्या हुआ ? गरीब दोस्त ने कहा तुजे कुछ आवाज सुनाई
दी?
अमीर दोस्त पीछे मुड़ा और पांच
का सिक्का उठाकर बोला
ये तो मेरी जेब से गिरा पांच के सिक्के
की आवाज़ थी। गरीब दोस्त एक कांटे के छोटे से पोधे
की तरफ गया
जिसमे एक तितली पंख फडफडा रही थी .
गरीब दोस्त ने उस तितली को धीरे से
बहार निकल और आकाश में आज़ाद कर
दिया . अमीर दोस्त ने आतुरता से पुछा तुजे
तितली की आवाज़ केसे सुनाई दी?
गरीब दोस्त ने नम्रता से कहा "
तेरे में और मुज में यही फर्क है
तुजे "धन" की सुनाई दी और मुझे "मन"
की आवाज़ सुनाई दी .
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