एक कोशिश .......इस उझाड से दृश्य की बेचारगी पर मेरे दिल में कुछ यूँ ख़याल आया ......
मेरे सर पे भी मोहब्बत का सहरा होता,
तेरे दर पे जो या रब वो ठहरा होता!
रह पाती ना खलिश सी यूँ विरानियाँ,
हर पत्थर पे किसी का जो पहरा होता!
इस तरहा सन्नाटा क्यूँ अब छाया,
कोई परचम तो यहाँ भी फ़हरा होता!
नसीब में मेरे फिर तन्हाई क्यूँ बरपी,
कोई मुसाफिर आकर यहाँ भी ठहरा होता!
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